मथुरा व वृंदावन के बंदरों में पनप रही है टीबी की बीमारी, मचा हड़कम्प
मथुरा व वृंदावन के बंदरों में पनप रही है टीबी की बीमारी, मचा हड़कम्प
-आईवीआरआई की रिपोर्ट में हुआ खुलासा, लोगों से बन्दरों में पहुंच रही बीमारी
-बरेली से आईवीआरआई की टीम ने वृन्दावन के एक सैंकड़ा बन्दरों पर किया था परीक्षण
मथुरा । धार्मिक नगरी मथुरा और वृंदावन में चहुंओर बंदर धमा चौकड़ी मचाते देखे जा सकते हैं, अभी तक यह बंदर लोगों के सामान छीनकर भाग जाते थे लेकिन अब इंसानों की जिंदगी इनके कारण खतरे में आ गई हैं, हाल ही एक रिसर्च में पता चला है कि यहां के बंदरों में टीबी की बीमारी पनप रही है, अभी तक मथुरा वृंदावन में बंदरों से लोग आतंकित थे, आईवीआरआई की स्पेशल रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि यहां के बन्दर टीबी की बीमारी से ग्रस्त हैं जिससे लोगों का स्वास्थ्य भी खतरे में पड़ सकता है ।
बरेली के इज्जतनगर स्थित इंडियन वेटेरिनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वृंदावन के बंदरों में टीबी की बीमारी फैल रही है, फेफड़ों में संक्रमण होने की वजह से इनका बर्ताव भी खूंखार होता जा रहा है जिसकी वजह उन्हें पर्याप्त खाना नहीं मिलना भी माना जा रहा है, पाँच माह पहले नगर निगम ने इन बंदरों को पकड़कर वन क्षेत्र में छोड़ने की योजना बनाई थी, उन्हीं बंदरों में कुछ बंदरों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया जिससे यह खुलासा हुआ है, अब नगर निगम इन बंदरों को आबादी क्षेत्र से दूर करने की कवायद में जुटा है ताकि इनके कारण अन्य जीव-जंतुओं में यह बीमारी नही फैले ।
वृन्दावन के बंदरों का स्वास्थ्य परीक्षण करने के लिए बरेली से आईवीआरआई की टीम पहुंची थी, करीब 100 बंदरों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया, कुछ मृत बंदरों का पोस्टमॉर्टम भी किया गया जिससे सामने आया कि वृन्दावन के बंदर टीबी जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं, रिपोर्ट में टीम को उनके फेफड़ों में संक्रमण मिला, आईवीआरआई के वैज्ञानिकों ने बताया कि बंदरों में होने वाली टीवी बीमारी को रिवर्स जूनोसिस कहा जाता है, जानवरों से इंसानों में होने वाली बीमारी को जूनोसिस बीमारी कहा जाता है, नगर निगम उन्हें पकड़कर जंगलों में छोड़ने की योजना बना रहा है जबकि वन विभाग बंदरों को टीबी से बचाने की तैयारी में है ।
बंदरों में फैली टीबी की बीमारी बारे में जब जानकारी की गई तो यह बात सामने आई कि जो लोग टीबी रोग से पीड़ित हैं, वह अपने द्वारा खाए गये फल और दूषित भोजन को इधर-उधर फेंक देते हैं जिसे बंदर खा जाते हैं जिसके बाद वह भी उस बीमारी से पीड़ित हो गये, वही वैज्ञानिकों के शोध में बंदरों के व्यवहार में उग्रता भी पाई गई, इसके लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिलने की वजह बताई जा रही है, देश-विदेश से आने वाले करोड़ों लोग वृन्दावन में बंदरों की समस्या से भलीभांति परिचित हैं, समय-समय पर इन बंदरों को पकड़ने की कवायद भी की जा चुकी है, वहीं डीएफओ रजनीकांत मित्तल ने बताया कि अब बंदर वन्य जीवों की संरक्षित प्रजाति की श्रेणी में नहीं आते है, इस कारण यह हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है किन्तु हमारी जानकारी में इस प्रकार की कोई रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है, अब बंदरों के स्वास्थ्य और उनके द्वारा मनुष्यों पर प्रभाव के विषय में नगर निगम देखरेख करता है ।