
उत्तर प्रदेश की राजधानी में वाहन चालकों द्वारा फ़ोन का इस्तेमाल, पुलिस की नाकामी
उत्तर प्रदेश की राजधानी में वाहन चालकों द्वारा फ़ोन का इस्तेमाल, पुलिस की नाकामी
लखनऊ । भारत के बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आधुनिकता के साथ तेजी से विकसित हो रही है, सड़कों पर वाहनों की भीड़, ट्रैफिक सिग्नल, सीसीटीवी और ट्रैफिक पुलिस की मौजूदगी के बावजूद एक गंभीर समस्या निरंतर बढ़ रही है, वाहन चलाते समय मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल, यह प्रवृत्ति ना सिर्फ ट्रैफिक नियमों की धज्जियाँ उड़ा रही है, बल्कि आम जनता की जान को भी ख़तरे में डाल रही है।
@बढ़ती लापरवाही – मोबाइल फ़ोन बना जानलेवा फैशन
आज लखनऊ की सड़कों पर नज़र डालें तो बड़ी संख्या में वाहन चालक चाहे दोपहिया हो या चारपहिया, वाहन चलाते समय मोबाइल फ़ोन पर बात करते या मैसेज करते दिखाई देते हैं कुछ लोग तो वीडियो कॉल या सोशल मीडिया लाइव तक करते देखे जाते हैं, यह ना सिर्फ मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 184 व 177-A का उल्लंघन है, बल्कि सड़क सुरक्षा के लिए सीधा खतरा भी है ।
@पुलिस की नाकामी या लापरवाही ?
लखनऊ पुलिस ट्रैफिक नियमों के पालन को लेकर कई अभियानों की घोषणा करती रहती है लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
• चौराहों पर तैनात ट्रैफिक पुलिसकर्मी अक्सर मोबाइल इस्तेमाल करने वाले चालकों को अनदेखा करते नज़र आते हैं ।
• ई-चालान व्यवस्था होते हुए भी मोबाइल प्रयोग करने के मामलों में चालान की संख्या नगण्य है ।
• सीसीटीवी कैमरे लगे होने के बावजूद इस नियम का उल्लंघन नियमित रूप से हो रहा है जिससे यह स्पष्ट है कि मॉनिटरिंग सिस्टम या तो ढीला है या फिर प्रभावी नहीं है ।
@परिणाम – सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि
वाहन चलाते समय मोबाइल का प्रयोग ध्यान भटकाता है जिससे प्रतिक्रिया समय कम हो जाता है, इससे ना केवल चालक बल्कि पैदल यात्री और अन्य वाहन चालक भी जोखिम में पड़ते हैं, लखनऊ ट्रैफिक विभाग के आँकड़ों के अनुसार, हर वर्ष मोबाइल प्रयोग से जुड़ी दुर्घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है ।
@जनजागरूकता की कमी
पुलिस की ओर से इस विषय पर कोई ठोस जनजागरूकता अभियान नहीं चलाया जा रहा है, न तो स्कूल-कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम नियमित हैं, न ही मीडिया के माध्यम से चेतावनी विज्ञापन। जबकि आवश्यकता है कि मोबाइल का वाहन संचालन के समय प्रयोग “सामाजिक अपराध” के रूप में देखा जाए।
@सुधार के उपाय
1. सख्त प्रवर्तन – पुलिस को मोबाइल उपयोग करने वालों पर तत्काल चालान व लाइसेंस निलंबन की कार्यवाही करनी चाहिए।
2. सीसीटीवी आधारित स्वचालित चालान प्रणाली को मज़बूत किया जाए।
3. जागरूकता अभियान – स्कूलों, कॉलेजों और रेड लाइट पर चलाए जाएँ ताकि लोग ख़तरे को समझें।
4. सोशल मीडिया निगरानी – सार्वजनिक रूप से वाहन चलाते हुए वीडियो बनाने या लाइव करने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई हो।
5. जन सहयोग तंत्र – नागरिकों को भी ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग के लिए हेल्पलाइन या ऐप उपलब्ध कराया जाए।
@निष्कर्ष
लखनऊ जो “नवाबी तहज़ीब” और अनुशासन का प्रतीक मानी जाती है, वहां इस तरह की लापरवाही प्रशासनिक असफलता का संकेत है, यदि समय रहते पुलिस ने इस पर कड़ा रुख नहीं अपनाया तो आने वाले वर्षों में मोबाइल-चालित दुर्घटनाएँ लखनऊ की सड़कों पर मौत का मुख्य कारण बन जाएँगी, यह समय है कि पुलिस सिर्फ चालान वसूली नहीं, बल्कि सड़क सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाए, लखनऊ को सुरक्षित बनाना केवल प्रशासन का नहीं, बल्कि नागरिकों के सजग व्यवहार का भी दायित्व है ।
साभार : शिखर अधिवक्ता उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ