
यमुना का दर्द: "मीठा-मीठा हप्प, कड़वा-कड़वा थू थू"
यमुना का दर्द: "मीठा-मीठा हप्प, कड़वा-कड़वा थू थू"
यह कैसी विडंबना है कि जिस यमुना को मथुरा जैसे धार्मिक शहर में सदियों से पूजनीय माना जाता है, वह आज पूरे साल पानी की एक-एक बूँद के लिए तरसती है। वृंदावन, गोकुल और मथुरा के घाट, जो कभी यमुना के निर्मल जल से भरे रहते थे, आज सूखे और उदास पड़े हैं। यह दृश्य मन को कचोटता है, क्योंकि यमुना केवल एक नदी नहीं, बल्कि आस्था और संस्कृति की पहचान है ।
वर्ष के अधिकांश समय यह नदी सूखी रहती है, इसका कारण साफ है: हरियाणा और दिल्ली में बने बड़े-बड़े बैराज, जैसे हथिनी कुंड और ओखला, यमुना के पानी को रोककर रखते हैं, इन बैराजों से नहरें निकालकर पानी को शहरों और खेतों में भेजा जाता है, यह पानी शहरों में पीने के लिए और खेतों में सिंचाई के लिए इस्तेमाल होता है, यह "मीठा-मीठा हप्प" है, क्योंकि यह बैराजों का फायदा है।
@एक तकनीकी विश्लेषण
@बैराज और पानी का खेल
यमुना नदी पर पानी को नियंत्रित करने के लिए कई बड़े बैराज और बांध बनाए गए हैं जिनमें से मुख्य रूप से हरियाणा और दिल्ली में स्थित हैं।
@हथिनी कुंड बैराज : यह बैराज हरियाणा के यमुनानगर जिले में स्थित है। इसका मुख्य काम यमुना के पानी को नियंत्रित करना है।
@पश्चिमी यमुना नहर (WYC) : यह नहर इसी बैराज से निकलती है और हरियाणा में लगभग 4.03 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करती है।
@पूर्वी यमुना नहर (EYC) : यह नहर बैराज के विपरीत किनारे से निकलती है और उत्तर प्रदेश में लगभग 2.25 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करती है।
इन दोनों नहरों को पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, बैराज में आमतौर पर पानी को रोककर रखा जाता है। यह "मीठा-मीठा हप्प" है, जो लाखों किसानों और शहरों के लिए जीवन रेखा है।
@वजीराबाद और ओखला बैराज : ये दोनों बैराज दिल्ली में हैं। वजीराबाद बैराज दिल्ली के लिए पीने के पानी का मुख्य स्रोत है, जबकि ओखला बैराज से आगरा नहर निकलती है, जो मथुरा और आगरा तक पानी पहुंचाती है, बाढ़ और जल-नियंत्रण की विडंबना मानसून के दौरान जब पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बारिश होती है तो इन बैराजों का जलस्तर तेजी से बढ़ता है।
हथिनी कुंड बैराज से पानी तब छोड़ा जाता है जब जलस्तर 3.50 लाख क्यूसेक से अधिक हो जाता है।
अगर जलस्तर 5 लाख क्यूसेक से ऊपर जाता है तो बाढ़ की चेतावनी जारी कर दी जाती है।
पिछले कुछ वर्षों में, जब भी यह आंकड़ा पार हुआ है, तब इन बैराजों से भारी मात्रा में पानी छोड़ा गया है। उदाहरण के लिए, 2023 में जब यमुना में बाढ़ आई थी, तो हथिनी कुंड बैराज से 2 लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ा गया था, जिसने दिल्ली और मथुरा में गंभीर बाढ़ की स्थिति पैदा कर दी।
यह वही पानी है जो साल भर यमुना के घाटों को सूखा रखता है, और जब आता है तो बाढ़ और तबाही लेकर आता है। यही "कड़वा-कड़वा थू थू" है।
यह तकनीकी विश्लेषण इस बात को स्पष्ट करता है कि नदी का प्रवाह प्राकृतिक रूप से नहीं हो रहा है, बल्कि यह मानव-निर्मित संरचनाओं द्वारा नियंत्रित है। नदी का उपयोग केवल सिंचाई और पीने के पानी के लिए किया जाता है, और जब जरूरत से ज्यादा पानी आता है तो उसे नीचे की ओर छोड़ दिया जाता है, जिससे नीचे के इलाकों में रहने वाले लोग बाढ़ का शिकार होते हैं। यह स्थिति यमुना के साथ हो रहे अन्याय को और भी स्पष्ट कर देती है।
लेकिन फिर आता है वह समय, जब मानसून में भारी बारिश होती है या ऊपरी इलाकों से पानी का तेज बहाव आता है। तब इन बैराजों का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर चला जाता है। जब पानी को रोककर रखना संभव नहीं होता, तो वे अपने फाटक खोल देते हैं और सारा अतिरिक्त पानी एक साथ मथुरा की ओर छोड़ देते हैं। यही वह समय है जब यमुना का पानी मथुरा पहुँचता है, लेकिन यह पानी जीवन नहीं, बल्कि बाढ़ और तबाही लेकर आता है।
यह पानी अपने साथ कचरा और गंदगी लेकर आता है, खेत डूब जाते हैं, लोगों के घरों में पानी घुस जाता है और जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। यह "कड़वा-कड़वा थू थू" है, क्योंकि यह पानी यहाँ के लोगों के लिए वरदान नहीं, बल्कि एक श्राप बन जाता है।
यह कैसी त्रासदी है कि जिस नदी का सदियों से सम्मान किया गया, आज वह केवल एक ड्रेन (गंदे पानी की निकासी) बनकर रह गई है। *जब तक बैराजों का पेट भरा हुआ है, तब तक यमुना सूखी है, और जब बैराज ओवरफ्लो होते हैं, तब यमुना अपना विकराल रूप दिखाती है।*
यह लेख केवल एक शिकायत नहीं है, बल्कि एक जागरूकता है। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यह न्याय है? यमुना का पानी साल भर मथुरा को मिले, चाहे थोड़ा ही मिले, ताकि यहाँ के लोगों की आस्था बनी रहे और नदी जीवित रहे। पानी को केवल अपने फायदे के लिए रोककर रखना और फिर आपदा के रूप में छोड़ देना, यह प्रकृति और मनुष्य दोनों के साथ अन्याय है। जब तक इस समस्या का समाधान नहीं निकलता, तब तक यमुना का यह दर्द बना रहेगा।
-अजय कुमार अग्रवाल
समाज चितंक,स्वतन्त्र पत्रकार