कान्हा नगरी की सड़कों पर चलना मतलब सरहद पर जैसे हो तैनाती
कान्हा नगरी की सड़कों पर चलना मतलब सरहद पर जैसे हो तैनाती
-सिर्फ औपचारिकता भर रह गये हैं जिम्मेदारान महकमे के सभी अभियान
-सड़को पर ट्रैफिक नहीं बल्कि लोगों की जिंदगी छीन रहा भ्रष्टाचार का बोझ
मथुरा । सड़क पर चलना, सरहद पर लड़ने से कम जोखिम भरा नहीं रह गया है, यही वजह है कि जब कोई युवक वाहन लेकर सड़क पर निकलता है तो उसके परिजन को उतनी ही चिंता रहती जितनी कि युद्ध के समय सरहद पर लड़ रहे जवान के परिजन चिंतित रहते हैं, जहां एक ओर सड़क खून से लाल हो रही हैं तो वहीं दूसरी ओर जिम्मेदार सरकारी महकमों के जिन अधिकारियों पर नियमों के पालन कराने की जिम्मेदारी है वही कानून की धज्जियां उड़ाते हैं, जैसे कि जिम्मेदार महकमों ने आंखों पर पट्टी बांध रखी है ।
एआरटीओ मथुरा द्वारा वर्षों से उन दो पहिया वाहन चालकों के खिलाफ कोई अभियान नहीं चलाया गया है जिनका कमर्शियल उपयोग किया जा रहा है, मोटरसाइकिल पर ही गैस सिलेंडर की डिलीवरी की जा रही है, मोटरसाइकिल पर ही दूध और खोवा की कैंन ढोई जा रही हैं, ऐसे दो पहिया वाहन अक्सर हादसे का कारण बनते हैं, सबसे ज्यादा खतरनाक ऑटो की सवारी हो गई है, ऑटो में जितनी सवारी बिठाने का लाइसेंस है उतनी तो ऑटो चालक अपनी सीट के दोनों और बिठा लेता है, बड़ा हादसा होने पर ही इनके खिलाफ पुलिस और एआरटीओ की सख्ती दिखाई देती है ।
वहीं दूसरी ओर जर्जर स्कूल बसें बच्चे ढो रहीं हैं तो खस्ताहाल हो चलीं मैक्स गाडियां मथुरा से आगरा और मथुरा से कोसी तक राष्ट्रीय राजमार्ग पर दौड़ रही हैं, ना ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने में नियमों का पालन किया जा रहा है और ना हीं फिटनेस टेस्ट में, यहां तक कि सड़क पर भी सिर्फ उगाही तक ही हर अभियान सीमित हैं, कान्हा की नगरी में सड़क पर निकलने से पहले व्यक्ति एक बार भगवान को जरूर याद करता है, यह सबकुछ इसके बावजूद है कि हर तिराहे चौराहे पर दिनभर पुलिस तैनात रहती है, ट्रैफिक पुलिस के जवान चालान काटते रहते हैं और तो और एआरटीओ कार्यालय भी कार्यवाही का दंभ भरता रहता है ।