घेवर की महक के साथ ही रक्षाबंधन पर्व आने का हो जाता है आगाज़
घेवर की महक के साथ ही रक्षाबंधन पर्व आने का हो जाता है आगाज़
घेवर के बिना अधूरा रहता है भाई बहन के प्रेम के प्रतीक रक्षाबंधन का पर्व
-सावन के महीने में घेवर से सज जाती है मिठाई की दुकान, होती मेहमाननवाजी
मथुरा । सलूने यानी रक्षाबंधन से जुड़ी ब्रज में कई अनूठी परंपरायें हैं, सावन के महीने में घेवर के बिना मेहमाननवाजी अधूरी ही रहती है, बहन अपने भाई के यहां जाती हैं तो घेवर जरूर लेकर जाती हैं, वहीं कोई मेहमान भी सावन के महीने में बिना घेवर के किसी के घर नहीं पहुंचता है, यानी ब्रज में बिना घेवर के सावन का महीना सूना ही रहता है, माना जाता है घेवर की महक उठने लगे तो समझो रक्षाबंधन का पर्व आ रहा है, जैसे-जैसे रक्षाबंधन नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे ही बाजारों में घेवर बड़े पैमाने पर स्टाॅक किया जाने लगा है, घेवर बनाने की विधि भी अन्य मिठाइयों से बेहद ही अलग है, जो कारीगर इस घेवर की मिठाई बनाने की विधा में माहिर होते हैं, उनकी मांग इस सीजन में बढ जाती है ।
घेवर कारीगर लोहरे हलवाई बताते हैं कि पहले एक पेस्ट बनाया जाता है, उसमें मैदा और दूध मिलाया जाता है, उसके बाद धीमी आग पर सांचों में बारी बारी से इस पेस्ट को डाला जाता है, यह प्रक्रिया करीबन 10 से 15 मिनट तक चलती रहती है और घेवर का फाउंडेशन तैयार होता है, इसके बाद फ्लेवर पर काम होता है, देसी घी भी घेवर बनाने में प्रयोग किया जाता है, जब यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो घेबर को आगे बढ़ाते हैं और इस पर तरह-तरह की लेयर चढ़ाई जाती है जिसमें मलाई घेवर, खोया घेवर प्रमुख रूप से बनाए जाते हैं, इनमें मिठास डालने के लिए चीनी का घोल डाला जाता है और यहां अलग-अलग टेस्ट में यह तैयार किया जाता है ।
यह सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद दुकान पर इसे बिक्री के लिए सजा कर रखा दिया जाता है, मिष्ठान विक्रेताओं की मानें तो घेवर और फेनी की डिमांड राजस्थान और ब्रज क्षेत्र में ही अधिक रहती है, इस महीने में नमी होने की बजह से मिठाइयों में चिपचिपाहट हो जाती है लेकिन फेनी और घेवर बरसात की नमी से खराब नहीं होते हैं, बल्कि उनका स्वाद और ज्यादा बढ़ जाता है, वहीं सावन के महीने में हरियाली तीज और रक्षाबंधन जैसे त्योहार होते हैं, इन त्योहारों में मिठाइयों की मांग ज्यादा होती है, यही वजह है कि सावन आते ही मिठाई की दुकानों पर घेवर और फेनी नजर आने लगते हैं और यह सावन के महीने के बाद तक पूरी वर्षा ऋतु तक रहते हैं ।