श्री खाटू श्याम जी के चुलकाना धाम का जानें इतिहास 


श्री खाटू श्याम जी के चुलकाना धाम का जानें इतिहास 
पाण्डव पुत्र भीम के प्रपौत्र हैं बर्बरीक जिन्हें श्री कृष्ण ने दिया था बाबा श्याम नाम
बाबा बर्बरीक ने हरियाणा के पानीपत जिले के चुलकाना में श्री कृष्ण को दिया था शीश का दान
"हारे के सहारे" का मिला है बरदान, महादेव से मिले थे तीन वाण जिनसे कर सकते थे सृष्टि का संहार
श्याम बाबा को कलियुग में श्री कृष्ण के अवतार के रूप में की जाती है पूजा व अर्चना
  चुलकाना धाम । इस दुनिया में अनेकों मंदिर हैं, हर एक मन्दिर की अपनी कहानी और अलग रहस्य है, ऐसा ही एक मंदिर हरियाणा राज्य के पानीपत जनपद के समालखा कस्बे से सिर्फ 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना गांव में है और अब यह गांव चुलकाना धाम के नाम से प्रसिद्ध है, यहां राजस्थान के सीकर जनपद में बसे खाटू श्याम बाबा का मंदिर है ।

“जहां दिया शीश का दान वह भूमि है चुलकाना धाम।।
जहां प्रकट हुए बाबा श्याम वह भूमि है खाटू धाम।।”

  चुलकाना धाम की वह पावन धरा जहां बाबा श्याम जी ने अपने शीश का दान दिया, यह वही पावन धरा है, जहां श्री कृष्ण जी ने महाबली दानी वीर बर्बरीक जी को विराट स्वरूप के दर्शन दिखलाए, हरियाणा राज्य के पानीपत के समालखा कस्बे से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना धाम प्रसिद्ध है, श्री श्याम खाटू वाले का प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर चुलकाना गांव में है, जब से गांव में मंदिर की स्थापना हुई है, तभी से खाटू नरेश चुलकाना नरेश भी बन गए, चुलकाना धाम को कलिकाल का सर्वोत्तम तीर्थ माना गया है।

💐"हारे का सहारा" क्यों बने बाबा बर्बरीक
  यही वह पवित्र स्थान हैं, जहां पर बाबा ने शीश का दान दिया था, चुलकाना धाम को कलिकाल का सर्वोत्तम तीर्थ स्थान माना गया है, चुलकाना धाम का सम्बन्ध महाभारत से जुड़ा है, पांडव पुत्र भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह दैत्य की पुत्री मोरवी (कामकन्टकटा) के साथ हुआ था, इनके ही पुत्र बर्बरीक थे, बर्बरीक को महादेव एवं विजया देवी का आशीर्वाद प्राप्त था, उनकी आराधना से बर्बरीक को तीन बाण प्राप्त हुये जिनसे वह सृष्टि तक का संहार कर सकता थे, बर्बरीक की माता को संदेह था कि पांडव महाभारत युद्ध में जीत नहीं सकते हैं, पुत्र की वीरता को देख माता ने बर्बरीक से वचन मांगा कि तुम युद्ध तो देखने जाओ लेकिन अगर युद्ध करना पड़ जाये तो तुम्हें हारने वाले का साथ देना है, मातृ भक्त पुत्र ने माता के वचन को स्वीकार किया इसलिये उनको हारे का सहारा भी कहा जाता है, माता जी की आज्ञा लेकर बर्बरीक युद्ध देखने के लिये घोड़े पर सवार होकर चल पड़े, उनके घोड़े का नाम लीला था जिससे लीला का असवार भी कहा जाता है ।

💐एक ही बाण से किया पूरे पेड़ में छेद 

  पांडवों का पलड़ा कमजोर था, जब बर्बरीक पहुंचे, तब तक पांडव मजबूत हो गए थे लेकिन बर्बरीक को तो हारे का सहारा बनना था, वहीं अगर वह कौरवों का साथ देते तो पांडव हार जाते, इसे ही देखते हुए श्रीकृष्ण एक ब्राह्मण का रूप लेकर बर्बरीक के पास पहुंचे और बर्बरीक की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने पीपल के पत्तों में छेद करने के लिए कहा था, साथ ही एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा लिया, वहीं बर्बरीक ने एक ही बाण से सभी पत्तों में छेद कर दिया, श्रीकृष्ण जी ने कहा, एक पत्ता रह गया है, तब बर्बरीक ने कहा कि आप अपना पैर हटाएं क्योंकि बाण आपके पैर के नीचे पत्ते में छेद करके ही लौटेगा । 

💐आज भी पीपल के पेड़ के हर पत्ते में छेद 
  श्याम मंदिर के पास एक पीपल का पेड़ है, पीपल के पेड़ के पत्तों में आज भी छेद हैं जिसे मध्ययुग में महाभारत के समय में वीर बर्बरीक ने अपने बाणों से बेधा था. वहीं, ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त बाबा श्याम से मन्नत मांगते हैं, उनकी मन्नत खाली नहीं जाती हैं ।

💐बाबा ने क्यों दिया शीश का दान
   युद्ध में पहुंचते ही उनका विशाल रूप देखकर सैनिक डर गये थे, श्री कृष्ण ने उनका परिचय जानने के बाद ही पांडवों को आने के लिये कहा, श्री कृष्ण एक ब्राह्मण का वेश धारण करके बर्बरीक के पास पंहुचे थे, बर्बरीक उस समय पूजा में लीन थे, पूजा खत्म होने के बाद बर्बरीक ने ब्राह्मण के रूप में देखकर श्री कृष्ण को कहा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ? श्री कृष्ण जी ने कहा कि जो मांगू क्या आप उसे दे सकते हो, बर्बरीक ने कहा कि मेरे पास देने के लिये कुछ नहीं है लेकिन फिर भी आपकी दृष्टि में कुछ है तो मैं देने के लिये तैयार हूं, श्री कृष्ण ने शीश का दान मांगा, बर्बरीक ने कहा कि मैं शीश दान दूंगा लेकिन एक ब्राह्मण कभी शीश दान नहीं मांगता। आप सच बतायें कौन हो ? श्री कृष्ण जी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुये तो बर्बरीक ने पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया ? तब श्री कृष्ण ने कहा कि इस युद्ध की सफलता के लिये किसी महाबली की बली चाहिये, धरती पर तीन वीर महाबली हैं "मैं, अर्जुन और तीसरे तुम हो", क्योंकि तुम पांडव कुल से हो, रक्षा के लिये तुम्हारा बलिदान सदैव याद रखा जायेगा, बर्बरीक ने देवी देवताओं का वंदन किया और माता को नमन कर एक ही वार में शीश को धड़ से अलग कर श्री कृष्ण को शीश दान कर दिया, श्री कृष्ण जी ने शीश को अपने हाथ में लेकर अमृत से सींचकर अमर करते हुये एक टीले पर रखवा दिया, जिस स्थान पर बर्बरीक का शीश रखा गया वो पवित्र स्थान चुलकाना धाम है और श्याम बाबा का धड़ आज भी चुलकाना धाम स्थित मन्दिर में आज भी विराजमान है जिसे आज हम प्राचीन सिद्ध श्री श्याम मन्दिर चुलकाना धाम के नाम से जानते हैं ।

💐चुलकाना धाम दूर दूर तक प्रसिद्ध
   श्री श्याम बाबा मन्दिर चुलकाना मंदिर के पुजारी मोहित शास्त्री जी ने बताया कि चुलकाना धाम दूर दूर तक प्रसिद्ध हो गया है, श्याम बाबा के दर्शन के लिए हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत अन्य राज्यों से भक्त आते हैं, मंदिर में श्याम बाबा के अलावा हनुमान, कृष्ण बलराम, शिव परिवार सहित अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां विराजित हैं, दूर दराज से लाखों की तादाद में भक्त मंदिर में आकर सुख समृद्धि की कामना करते हैं ।

💐श्री श्याम मंदिर सेवा समिति चुलकाना धाम
   वर्ष 1989 में इस मंदिर के उद्धार हेतु कमेटी गठित की गई एवं यहाँ पर एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया, मंदिर में श्री श्याम बाबा के साथ विभिन्न देवताओं की मूर्तियाँ हैं, साथ ही श्याम भक्त बाबा मनोहर दास जी की समाधि भी स्थित है, बताया जाता है कि बाबा मनोहर दास ने ही सबसे पहले श्याम बाबा की पूजा अर्चना की थी, वैरागी परिवार की 18वीं पीढ़ी मंदिर की देखरेख में आज भी सेवा दे रही है, मंदिर में श्याम कुंड भी बनाया गया है ।


💐चुलकाना धाम का मेला
   चुलकाना धाम स्थित श्याम बाबा के मंदिर में हर एकादशी को जागरण होता है, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी व द्वाद्वशी को श्याम बाबा के दरबार में विशाल मेलों का आयोजन किया जाता है जिनमे दूर दराज से लाखों की तादाद में भक्तजन मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं, मेले वाले दिन श्रद्धालु समालखा से चुलकाना गाँव तक पैदल यात्रा करते हैं और रास्ते में जगह-जगह विशाल भंडारों का आयोजन किया जाता है।

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