
राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में भोर तक जमे रहे श्रोतागण
राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में भोर तक जमे रहे श्रोतागण
-दीनदयाल धाम में विशाल राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का हुआ आयोजन
मथुरा (फरह) । पं. दीनदयाल उपाध्याय स्मृति महोत्सव मेला में दूसरे दिन शुक्रवार रात को राष्ट्रीय कवियों ने राष्ट्रवाद की अलख जगाई तो श्रोता पूरी रात पंडाल में तालियों की गड़गड़ाहट करते रहे, हास्य व्यंग के साथ महिला सशक्तिकरण और गाय की दुर्दशा भी कविता के माध्यम से श्रोताओं तक पहुंची, कवि सम्मेलन का शुभारंभ भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष डा0 दिनेश शर्मा, जिला पंचायत अध्यक्ष किशन चौधरी, मेला अध्यक्ष सोहनलाल शर्मा, कोषाध्यक्ष नरेंद्र पाठक ने दीनदयाल जी के चित्रपट के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया ।
इटावा से आए गौरव चौहान ने "भरतवंसी हृदय में शेर सा अभिमान बोलेगा, जवानी की जुबानी पर वही यशगान बोलेगा" "फना हो जाएंगे लेकिन कभी खामोश ना होंगे", "हमारे खून के कतरों में हिंदुस्तान बोलेगा" कविता सुनाकर समूचे पंडाल को तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान कर दिया, वहीं
सुरेश अलबेला ने "मेरा ये जिस्म गर मिट्टी में मिलता है तो मिल जाए", "मैं बाजी हार सकता हूं समर्पण कर नहीं सकता", सुनाकर कर वाहवाही बटोरी, एटा की योगिता चौहान ने "इस धरती से उस अम्बर तक घर-घर अलग जगानी है", "जान हथेली पर रखकर भी हमको गाय बचानी है" सुनाकर गौ सेवा के प्रति अलख जगाने का प्रयास किया ।
वहीं जयपुर के कवि अशोक चारण ने पहलगाम हमले को केंद्र बनाकर काव्य पाठ करते हुए "खुद को रब का बंदा कहते उनको आई शर्म नहीं, धर्म पूछ-पूछ कर मार रहे हैं उनका कोई धर्म नहीं", सुनाकर श्रोताओं को रोमांचित कर दिया, मेरठ की कवियत्री डा0 शुभम त्यागी के गीत "पुजारन बन गई तेरी मेरा घनश्याम तू बन जा, निरंतर चल रही हूं मैं मेरा विश्राम तू बन जा" को खूब सराहा गया, बनारस की डा0 विभा सिंह और शिवांगी प्रेणा ने छंद और मुक्तक पेश किए, धौलपुर के पदम गौतम ने किसानों की पीड़ा को कविता से प्रस्तुत किया, कवि संयोजक सचिन दीक्षित ने कविता के माध्यम से हिंदुओं की दुर्दशा और जातिवाद को प्रस्तुत करते हुए कहा कि "यह हिंदू वीर योद्धा का गौरव गान नहीं करते, राणा सांगा और शिवाजी का सम्मान नहीं करते" ।