प्राकृतिक ऊर्जा और देवी शक्ति के संचार के प्रतीक हैं नवरात्रि के नौ दिन

प्राकृतिक ऊर्जा और देवी शक्ति के संचार के प्रतीक हैं नवरात्रि के नौ दिन
-प्रत्येक दिन अलग-अलग विधि और मंत्रों के साथ होती है माता रानी के नौ स्वरूपों की पूजा 
-शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री हैं माता दुर्गा के नौ स्वरूप
   हिंदू धर्म में माता दुर्गा की पूजा को नवरात्रि के रूप में नौ दिन तक मनाने की प्राचीन परंपरा रही है, यह केवल एक धार्मिक रिवाज नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी आध्यात्मिक, प्रतीकात्मक और प्राकृतिक दृष्टि से महत्व छुपा है, नवरात्रि का यह पर्व हमें यह सिखाता है कि भक्ति, तप और संयम ही जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति और आंतरिक शक्ति प्राप्त करने का मार्ग हैं।


     माता दुर्गा के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा प्रत्येक दिन अलग-अलग विधि और मंत्रों के साथ होती है, प्रत्येक स्वरूप जीवन के अलग-अलग गुणों का प्रतीक है, शैलपुत्री साहस और ज्ञान का संदेश देती हैं, ब्रह्मचारिणी तप और संयम का प्रतीक हैं, कालरात्रि बुराई पर विजय का मार्ग दिखाती हैं और सिद्धिदात्री आध्यात्मिक उन्नति और सिद्धियों की प्राप्ति का संकेत देती हैं, इसी कारण नवरात्रि के नौ दिन केवल भक्ति का अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन में गुणों का संचार और आत्मशक्ति का विकास भी हैं।
 देवी भागवत में भी कहा गया है कि “या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥” अर्थात् “सभी जीवों में जो शक्ति रूपी देवी रूप से प्रतिष्ठित हैं, उनका मैं बार-बार, तीन बार, नमन करता हूँ।” यह श्लोक हमें याद दिलाता है कि देवी शक्ति हर जीव और प्रकृति में व्याप्त है, और उसकी भक्ति से ही जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है, पुराणों के अनुसार, देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक दुष्ट असुर का वध नौ दिनों तक युद्ध करके किया था, इसी घटना से नवरात्रि के नौ दिन निर्धारित हुए, यह केवल एक कथा नहीं, बल्कि यह संदेश देती है कि सच्ची भक्ति, तप और संयम से हर कठिनाई पर विजय पाई जा सकती है ।
    इसी संदर्भ में ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है: “सर्वशत्रुनिवृत्त्या दुर्गा भवति महेश्वरी ।
शरणागतदीनार्तिनां रक्षामि हरिषु च ॥” अर्थात् “मैं दुर्गा, सभी शत्रुओं को नष्ट करने वाली, शरणागत और दीन-हीन प्राणियों की रक्षा करने वाली हूं।” यह श्लोक हमें शक्ति और सुरक्षा की अनुभूति देता है, नौ दिन की अवधि में उपवास, मंत्र जाप और विशेष पूजा विधियों से व्यक्ति का मन और शरीर शुद्ध और संतुलित होता है, यह समय भक्त को आत्म निरीक्षण, संयम, धैर्य और आध्यात्मिक अनुशासन सीखने का अवसर देता है ।
   साथ ही नवरात्रि का समय प्रकृति के ऋतु परिवर्तन वसंत और शरद से जुड़ा होता है, जब प्रकृति में नया जीवन और ऊर्जा उत्पन्न होती है, नवरात्रि के नौ दिन इस प्राकृतिक ऊर्जा और देवी शक्ति के संचार का प्रतीक हैं, संक्षेप में, माता की पूजा नौ दिन तक करने का उद्देश्य केवल धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि नौ देवी रूपों का सम्मान, जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार, बुराई पर विजय और आत्मिक उन्नति है। नवरात्रि हमें यह संदेश देती है कि जीवन में सच्ची भक्ति, तप और संयम से हर कठिनाई पर विजय पाई जा सकती है और व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्तियों और गुणों के माध्यम से सम्पूर्ण जीवन में संतुलन और सफलता प्राप्त कर सकता है । 


साभार-विजय कुमार शर्मा-विनायक फीचर्स) 

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