ब्याज माफियाओं की प्रताड़ना से त्रस्त हैं आमजन, जिम्मेदारन मूकदर्शक

ब्याज माफियाओं की प्रताड़ना से त्रस्त हैं आमजन, जिम्मेदारन मूकदर्शक 
-साहूकारी विनियम अधिनियम के अनुसार 12 फीसदी वार्षिक से ज्यादा नही ले सकते हैं ब्याज 
-जनपद में मुठ्ठीभर ही साहूकार पंजीकृत, दस हजार से भी ज्यादा ब्याज माफियाओं का है आतंक
-अभी हाल में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में ब्याज माफिया से त्रस्त होकर परिवार सहित की आत्महत्या
   मथुरा । जनपद में अवैध निजी साहूकारों की कारगुजारियों से आम जनमानस का जीना मुहाल हो गया है, साहूकारी विनियम अधिनियम 1976 का खुलेआम मखौल उड़ाया जा रहा है, जनपद भर में जरूरत मंद निचले तबके स्तर पर जीवन बसर कर रहे आम जन को मोटी ब्याज की एवज में धन मुहैया कराने वाले हजारों की संख्या में अवैध साहूकारों का आतंक व्याप्त है, जिला प्रशासन से तमाम बार शिकायत किये जाने के बाबजूद भी ऐसे तथाकथित ब्याज माफियाओं की मनमानी पूर्ण रवैये पर कोई अंकुश नही लगाया जा रहा है, जबकि जनपदभर में मुठ्ठी भर साहूकार ही क़ानूनी रूप से पंजीकृत हैं, ऐसे ब्याज माफियाओं के चंगुल में फंसे लोगों द्वारा आत्मघाती कदम उठाने के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं, अभी हाल ही 28 अगस्त को उत्तर प्रदेश के शाहजंहापुर में ब्याज माफिया के चंगुल में फंसे दम्पत्ति सचिन ग्रोवर ने पत्नी शिवांगी और अपने तीन वर्षीय पुत्र के आत्महत्या का मामला प्रकाश में आया है जिसने आमजन को दहला दिया है ।


    जनपद में जरुरत मन्द लोगों को धन मुहैया कराने के नाम पर मनमानी ब्याज के साथ ही तमाम तरह से आतंकित व् परेशान किये जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है, साहूकारी विनियम अधिनियम 1976 के अंतर्गत जिलाधिकारी कार्यालय से कानूनन लायसेंस लेना अनिवार्य है, अधिनियम के नियमानुसार ब्याज दर 12 प्रतिशत सालाना तय होने के बाबजूद बाजार में 10 प्रतिशत से लेकर 25 प्रतिशत तक मासिक की दर से बसूली खुलेआम की जा रही है, साथ ही ब्याज की राशि समय पर भुगतान नही किये जाने की स्थिति में आर्थिक व् मानसिक रूप से भी प्रताड़ित किया जाता है, जबकि अधिनियम के अनुसार समय पर ब्याज का भुगतान नही किये जाने पर व्यक्ति को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित किये जाने पर भारतीय दंड संहिता अधिनियम के तहत दण्डित किये जाने का प्रावधान उल्लिखित है, अवैध निजी ब्याज माफियाओं द्वारा ब्याज पर रकम देते समय भी आम जन से तमाम कागजी कार्यवाही जैसे खाली स्टाम्प पेपर पर हस्ताक्षर सहित खाली बैंक चैक हस्ताक्षर व् अन्य कागजात आदि की औपचारिकताएं करने के बाद भी मोटी ब्याज बसूली व् मानसिक व् आर्थिक रूप से शोषण किया जाना आम बात है, जिस ओर जिला प्रशासन को लगातार ध्यान दिलाये जाने के पश्चात् भी कोई ठोस कदम नही उठाया जाना प्रशासन की संलिप्तता की ओर भी इशारा करता है ।


   वहीं दूसरी ओर ब्याज धन मुहैया कराए जाने के कारोबार को करने के लिए साहूकारी विनियम अधिनियम 1976 के अंतर्गत सम्बंधित जिलाधिकारी कार्यालय से पंजीकरण कराना व् ब्याज दर भी अधिकतम 12 प्रतिशत ही बसूलने के प्रावधान के बाबजूद खुलेआम 10 से 25 प्रतिशत मासिक की दर से बसूली का अवैध कारोबार निरंतर जारी है, ज्ञातव्य हो कि जनपद भर में सिर्फ 58 लायसेंस धारक ही जिलाधिकारी कार्यालय से पंजीकृत है जबकि प्राप्त जानकारी के अनुसार जनपद भर में लगभग पांच हजार से भी अधिक छोटे बड़े ब्याज माफियाओं द्वारा अवैध ब्याज का कारोबार संचालित किया जा रहा है, ब्याज के नाम पर निचले तबके के स्तर पर जीवन यापन कर रहे आम जन मानस को मानसिक व् आर्थिक रूप से प्रताड़ित किये जाने का सिलसिला खुलेआम बदस्तूर जारी है ।


   जानकारी के अनुसार उक्त तथाकथित अवैध ब्याज माफियाओं द्वारा जमीन, जायदाद, सोना, चांदी सहित कीमती सामान आदि जमानत के तौर पर गिरबी रख कर मनमानी ब्याज दर पर धन मुहैया करा कर आम जन को विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है, आम जन द्वारा पुलिस व् जिला प्रशासन से शिकायत दर्ज कराने व् गुहार लगाने पर भी कोई भी क़ानूनी कार्यवाही अमलीकरण नहीं किये जाने से उपरोक्त तथाकथित गैर पंजीकृत ब्याज माफियाओं का दिन प्रति दिन हौंसले बुलंद हो रहे हैं, आम जन मानस का जीना मुहाल हो रहा है ।
    वहीं दूसरी ओर सरकारी वित्तीय सँस्थान व् बैंकों द्वारा जरुरत मंदों को धन मुहैया कराने में शिथिलता बरते जाने व् जटिल क़ानूनी औपचारिकताओं की बजह से भी आम जन को मजबूरन जरुरत के बक्त ऐसे तथाकथित अवैध ब्याज कारोबारियों की तरफ जाना पड़ता है जिसका ऐसे तथाकथित अवैध कारोबारी जी भर कर लाभ उठाते हैं, यदि शासन द्वारा साहूकारी विनियम अधिनियम 1976 का कड़ाई से पालन कराये व् सरकारी वित्तीय सँस्थान व् बैंकों से जरूरत मंद आम जन को आसानी से धन मुहैया कराया जाये तो आम जन को ऐसे मानसिक व् आर्थिक प्रताड़ना से बचाया जा सके, साथ ही ऐसे तथाकथित अवैध ब्याज माफियाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है ।

 

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