जनसंख्या नियंत्रण अधिनियम पारित करने व यूनिफार्म सिविल कोड पर विचार करे सरकार

जनसंख्या नियंत्रण अधिनियम पारित करने व यूनिफार्म सिविल कोड पर विचार करे सरकार

   भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है। तेजी से बढ़ती आबादी ना सिर्फ संसाधनों पर दबाव डाल रही है बल्कि बेरोज़गारी, गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरणीय असंतुलन जैसी अनेक समस्याओं को भी जन्म दे रही है। इसी कारण यह अत्यावश्यक हो गया है कि भारत सरकार जनसंख्या नियंत्रण अधिनियम को शीघ्र लागू करने पर गंभीरता से विचार करे, साथ ही समान नागरिक संहिता का प्रश्न भी राष्ट्रीय एकता, समानता और सामाजिक न्याय के लिए उतना ही महत्वपूर्ण हो गया है।

 

1. जनसंख्या नियंत्रण की आवश्यकता

    सूत्रों के अनुसार भारत की जनसंख्या 145.09 करोड़ (2024) हो चुकी है और हर वर्ष करोड़ों की संख्या में नई आबादी जुड़ रही है। कृषि योग्य भूमि सीमित है, जल स्रोतों पर दबाव बढ़ रहा है और बेरोज़गार युवाओं की संख्या भयावह रूप ले रही है।

• संसाधनों पर दबाव : बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ बढ़ती आबादी के अनुपात में उपलब्ध नहीं हो पा रहीं।

• बेरोज़गारी और गरीबी : जनसंख्या जितनी तेज़ी से बढ़ती है, उतनी तेज़ी से रोजगार के अवसर नहीं बढ़ पाते।

• पर्यावरणीय क्षति: वनों की कटाई, प्रदूषण और कचरे की समस्या बढ़ती आबादी का ही दुष्परिणाम है।

  इसलिए अब “दो बच्चे पर्याप्त हैं” जैसी नीति को केवल नारा नहीं बल्कि कानूनी प्रावधान बनाया जाना चाहिए।

 

2. जनसंख्या नियंत्रण अधिनियम का स्वरूप

  संभावित जनसंख्या नियंत्रण अधिनियम में निम्न प्रावधान किए जा सकते हैं:

• दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्तियों को सरकारी सुविधाओं, पदों या चुनावों में प्रतिबंध।

• परिवार नियोजन को शिक्षा प्रणाली में अनिवार्य अध्याय बनाया जाए।

• जागरूकता अभियानों के साथ-साथ ग्रामीण व पिछड़े इलाकों में सुलभ स्वास्थ्य सेवाएँ दी जाएँ।

• परिवार नियोजन अपनाने वालों को प्रोत्साहन एवं कर में राहत दी जाए।

 

ऐसे प्रावधान किसी धार्मिक या सामाजिक स्वतंत्रता का हनन नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में आवश्यक अनुशासन हैं।

 

3. समान नागरिक संहिता की आवश्यकता

     भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, परंतु आज भी विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून लागू हैं। यह स्थिति समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है।

• संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य को निर्देश देता है कि वह नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करे।

• समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी नागरिकों को समान अधिकार और दायित्व मिलेंगे, चाहे उनका धर्म कोई भी हो।

• यह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करेगा और “समान न्याय, समान नागरिकता” के भाव को सशक्त बनाएगा।

 

4. विरोध और चिंताएँ

     कुछ वर्गों में यह आशंका है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून या समान नागरिक संहिता धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप कर सकते हैं। परंतु, यह स्पष्ट होना चाहिए कि ये कानून किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में समान नीति का प्रतीक हैं।

सरकार को इन मुद्दों पर संवाद, संवेदनशीलता और सर्वसम्मति के साथ आगे बढ़ना चाहिए ताकि समाज में विभाजन की भावना न उत्पन्न हो ।

 

5. निष्कर्ष

     भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में जनसंख्या नियंत्रण और समान नागरिक संहिता दोनों ही राष्ट्रीय एकता, संसाधन संतुलन और सामाजिक न्याय के लिए अपरिहार्य हैं।

  अब समय आ गया है कि सरकार राजनीतिक संकोच त्यागकर ठोस कदम उठाए।

   जनसंख्या नियंत्रण अधिनियम और यूनिफार्म सिविल कोड का लागू होना न केवल आधुनिक भारत की आवश्यकता है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सशक्त, संतुलित और समानता-आधारित राष्ट्र निर्माण की दिशा में ऐतिहासिक कदम साबित होगा।

शिखर अधिवक्ता उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ

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