
भारत में लागू किया जाना चाहिए “अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम”
भारत में लागू किया जाना चाहिए “अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम”
लखनऊ । भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ न्यायपालिका और विधि व्यवसाय लोकतंत्र के दो मजबूत स्तंभ हैं। अधिवक्ता न केवल न्याय दिलाने में सहायक होते हैं बल्कि नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के रक्षक भी हैं लेकिन हाल के वर्षों में वकीलों पर हमलों, धमकियों और उत्पीड़न की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। ऐसे हालात में यह आवश्यक हो गया है कि भारत में “अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम” लागू किया जाए ताकि अधिवक्ता निर्भय होकर न्यायिक कार्य कर सकें।
अधिवक्ता संरक्षण की आवश्यकता
वकीलों पर बढ़ते हमले : विभिन्न राज्यों से लगातार ऐसी घटनाएँ सामने आई हैं जहाँ अधिवक्ताओं पर उनके पेशेगत कार्य के दौरान या उसके कारण हमले हुए हैं। ख़ास तौर से कई बार पुलिस, दबंग तत्व या असंतुष्ट पक्षकार अधिवक्ताओं को डराने-धमकाने की कोशिश करते हैं।
न्याय प्रणाली पर असर : यदि अधिवक्ता सुरक्षित नहीं रहेंगे तो आम नागरिकों की न्याय तक पहुँच भी असुरक्षित हो जाएगी। डर के माहौल में कोई भी वकील स्वतंत्र रूप से अपने मुवक्किल का पक्ष नहीं रख पाएगा।
मौजूदा कानूनों की कमी : वर्तमान में अधिवक्ता अधिनियम 1961 केवल अधिवक्ताओं के पंजीकरण और आचार संहिता से संबंधित है। इसमें सुरक्षा से जुड़े कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं। इसलिए एक स्वतंत्र कानून की आवश्यकता है जो अधिवक्ताओं को कानूनी व शारीरिक सुरक्षा दे सके।
अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य।
@अधिवक्ताओं को शारीरिक व मानसिक सुरक्षा प्रदान करना।
पेशेगत स्वतंत्रता और गोपनीयता की रक्षा करना।
@वकीलों पर हमला, धमकी या उत्पीड़न की स्थिति में त्वरित न्याय और कठोर दंड सुनिश्चित करना।
@पीड़ित अधिवक्ताओं को आर्थिक मुआवजा और पुलिस सुरक्षा देना।
@बार काउंसिल व पुलिस प्रशासन के बीच समन्वय तंत्र बनाना।
अधिनियम में प्रस्तावित प्रमुख प्रावधान।
अधिवक्ता पर हमला एक संज्ञेय अपराध:
किसी अधिवक्ता पर उसके पेशे के कारण हमला, डराना, धमकाना या झूठे मामले में फँसाना — गंभीर अपराध माना जाए और इसके लिए न्यूनतम 6 माह से 5 वर्ष तक की सज़ा और जुर्माना निर्धारित हो।@त्वरित पुलिस कार्रवाई : अधिवक्ता के शिकायत दर्ज करते ही संबंधित थाने को 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट दर्ज करनी अनिवार्य हो।
@सुरक्षा प्रकोष्ठ : प्रत्येक ज़िले में अधिवक्ता सुरक्षा प्रकोष्ठ बनाया जाए जिसमें पुलिस अधिकारी, बार काउंसिल प्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी हों, जो किसी भी आपात स्थिति में तुरंत कार्रवाई करें।
@मुआवजा एवं सहायता : अधिवक्ता के घायल होने, मृत्यु या संपत्ति के नुकसान पर सरकार द्वारा आर्थिक सहायता व बीमा सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए।
@पेशेगत कार्य में हस्तक्षेप पर दंड : यदि कोई अधिकारी या व्यक्ति किसी वकील के पेशेगत कार्य में बाधा डालता है, तो उसे दंडित किया जाए।
@कोर्ट परिसर की सुरक्षा : सभी न्यायालय परिसरों में सीसीटीवी कैमरे, प्रवेश नियंत्रण और सुरक्षा कर्मियों की पर्याप्त व्यवस्था की जाए।
राजस्थान मॉडल – एक प्रेरणा
राजस्थान सरकार ने 2023 में “ राजस्थान अधिवक्ता संरक्षण विधेयक” पारित किया, जो इस दिशा में एक सराहनीय कदम है। इस कानून में वकीलों पर हमले को गंभीर अपराध माना गया है और पुलिस को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। यह कदम अन्य राज्यों और केंद्र सरकार के लिए उदाहरण बन सकता है।
केंद्र सरकार की भूमिका
भारत में यदि केंद्र सरकार एक समान राष्ट्रीय अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम लागू करती है, तो देशभर के वकीलों को समान सुरक्षा मिलेगी। इसके लिए संसद में विधेयक लाया जा सकता है, जिसमें निम्न बिंदु शामिल हों—
वकीलों पर हमले के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट
राष्ट्रीय स्तर पर अधिवक्ता सुरक्षा प्राधिकरण शिकायतों की ऑनलाइन मॉनिटरिंग केंद्रीय व राज्य निधि से वित्तीय सहायता।
न्यायिक प्रक्रिया पर जनता का विश्वास बढ़ेगा।
अधिवक्ता निडर होकर कार्य करेंगे।
भ्रष्टाचार, दबाव और भय का माहौल कम होगा।
वकीलों और न्यायिक तंत्र के बीच बेहतर तालमेल बनेगा।
अधिवक्ता केवल मुक़दमे नहीं लड़ते, वे सामाजिक न्याय और संविधानिक मूल्यों की रक्षा करते हैं। यदि अधिवक्ता सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो न्याय भी असुरक्षित रहेगा। इसलिए भारत सरकार को तत्काल इस दिशा में कदम उठाते हुए “अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम” लागू करना चाहिए, ताकि हर अधिवक्ता यह महसूस कर सके कि उसके साथ देश की न्याय प्रणाली खड़ी है, यह अधिनियम न केवल अधिवक्ताओं की सुरक्षा का माध्यम बनेगा, बल्कि यह लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत करेगा।
साभार : शिखर अधिवक्ता उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ