
बुनियादी जरूरतों पर सरकार से उपेक्षित कुछ सुधारात्मक कदम
बुनियादी जरूरतों पर सरकार से उपेक्षित कुछ सुधारात्मक कदम
आज़ाद भारत को 75 साल से अधिक हो चुके हैं लेकिन आज भी आम नागरिकों की बुनियादी ज़रूरतें—बेहतर स्वास्थ्य सेवा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वच्छ जल, शुद्ध हवा, और सुलभ यातायात—एक सपना बनी हुई हैं। सरकारें बदलती रहीं, योजनाएं बनती रहीं लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि आम जनता आज भी अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत है, विशेषकर हाईवे पर टोल टैक्स की मार और स्वास्थ्य एवं शिक्षा का निजीकरण, आम नागरिक की ज़िंदगी को दिन-प्रतिदिन कठिन बना रहे हैं ।
1. स्वास्थ्य : मौलिक अधिकार या महंगा व्यापार ?
स्वास्थ्य सेवाएं आज एक व्यापार बन चुकी हैं, सरकारी अस्पतालों की स्थिति दयनीय है —चिकित्सकों की कमी, खराब उपकरण, दवाइयों की अनुपलब्धता और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं आम हैं। वहीं, निजी अस्पताल आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं।
@समस्याएं:
ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की भारी कमी।
सरकारी अस्पतालों में इलाज में देरी और बदइंतजामी।
आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं सीमित प्रभावशाली।
मेडिकल स्टाफ की भारी कमी और पलायन।
@ज़रूरी सुधार:
स्वास्थ्य को संवैधानिक मौलिक अधिकार घोषित किया जाए।
बजट में स्वास्थ्य पर खर्च को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5% से अधिक किया जाए।
प्रत्येक जिले में आधुनिक, मुफ्त सरकारी मल्टी-स्पेशलिटी अस्पताल स्थापित हों।
2. शिक्षा : साक्षरता से आगे, गुणवत्ता की ओर
आज शिक्षा प्रणाली केवल डिग्री दिलवाने का माध्यम बन चुकी है, ज्ञान और कौशल विकसित करने का नहीं, सरकारी स्कूलों की स्थिति खराब है और निजी स्कूलों की फीस अत्यधिक, डिजिटल डिवाइड भी गहराता जा रहा है ।
@समस्याएं:
शिक्षक अनुपस्थित रहते हैं या अप्रशिक्षित होते हैं ।
पाठ्यक्रम पुराने और व्यावहारिक ज्ञान से दूर हैं।
शिक्षा का निजीकरण और कोचिंग इंडस्ट्री की बेतहाशा बढ़त।
@ज़रूरी सुधार:
स्कूल और कॉलेजों में शिक्षा का स्तर बेहतर किया जाए।
मुफ्त उच्च शिक्षा योजनाएं लागू हों।
तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
3. टोल टैक्स मुक्त यात्रा : एक नागरिक अधिकार बनें
भारत में सड़कों पर यात्रा करना एक आर्थिक बोझ बन चुका है। टोल टैक्स हर 30-50 किमी पर देना पड़ता है, जिससे ईंधन के दाम, समय, और पैसा — तीनों की बर्बादी होती है। यह एक ऐसा टैक्स है, जिसे बार-बार वसूला जाता है, जबकि सड़क पहले ही सरकारी निधियों से बन चुकी होती है।
@समस्याएं:
हर साल रोड टैक्स, रजिस्ट्रेशन टैक्स और एक्साइज ड्यूटी के नाम पर टैक्स वसूले जाते हैं।
टोल बूथों पर जाम, समय की बर्बादी और डिजिटल सिस्टम की विफलता।
गरीब और मध्यम वर्ग सबसे अधिक प्रभावित।
@ज़रूरी सुधार:
टोल टैक्स प्रणाली को समाप्त कर सड़क रख-रखाव हेतु वैकल्पिक प्रणाली लागू की जाए (जैसे- ईंधन पर एक स्थायी सेस)।
सड़क निर्माण के लिए सार्वजनिक निधी का उपयोग हो।
वीआईपी व आम नागरिक में टोल टैक्स छूट को लेकर समानता लाई जाए।
4. अन्य बुनियादी ज़रूरतें भी होनी चाहिए प्राथमिकता
@जल और स्वच्छता: हर घर को साफ़ पीने का पानी और शौचालय सुविधा।
@रोज़गार : रोजगार सृजन को प्राथमिकता दी जाए, ताकि लोग गरीबी से निकल सकें।
@सुरक्षा: नागरिकों की व्यक्तिगत और डिजिटल सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
@यातायात व ट्रांसपोर्ट: सार्वजनिक परिवहन मजबूत हो, ताकि लोग निजी वाहन पर निर्भर न रहें।
#निष्कर्ष
भारत एक विकासशील देश से विकसित बनने की ओर बढ़ रहा है, लेकिन जब तक आम जनता की बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं होंगी, तब तक कोई भी आर्थिक प्रगति अधूरी मानी जाएगी।
स्वास्थ्य, शिक्षा, टोल टैक्स मुक्त यात्रा, एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं केवल नीतियों में नहीं, ज़मीन पर उतरनी चाहिए।
सरकार को अब ‘विकास’ के नाम पर आंकड़ों से आगे बढ़कर आम आदमी की ज़िंदगी को केंद्र में रखना होगा — यही सच्चा लोकतंत्र होगा।
साभार : शिखर अधिवक्ता उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ।