भारत में आशा कार्यकर्ताओं को कम वेतन – एक चिंताजनक स्थिति

भारत में आशा कार्यकर्ताओं को कम वेतन – एक चिंताजनक स्थिति 

    भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था के सबसे निचले लेकिन सबसे महत्वपूर्ण स्तर पर कार्य करने वाली आशा कार्यकर्ता देश की प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली की रीढ़ हैं । ये महिलाएँ गाँव-गाँव जाकर गर्भवती महिलाओं की देखभाल, टीकाकरण, प्रसव सहायता, परिवार नियोजन, पोषण जागरूकता और विभिन्न सरकारी योजनाओं की जानकारी जनता तक पहुँचाने का कार्य करती हैं, इसके बावजूद उनके योगदान की तुलना में उन्हें मिलने वाला पारिश्रमिक अत्यंत कम और असमान है, यह एक गंभीर और चिंताजनक सामाजिक-प्रशासनिक समस्या बन चुकी है।

 

@आशा कार्यकर्ताओं की स्थिति

    भारत में लगभग 10 लाख से अधिक आशा कार्यकर्ता कार्यरत हैं, इनकी नियुक्ति राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत की जाती है।

• इन्हें नियमित कर्मचारी का दर्जा नहीं दिया गया है।

• अधिकतर राज्यों में इन्हें केवल 2000 से 4000 रुपये प्रतिमाह तक प्रोत्साहन राशि दी जाती है जबकि कार्यभार लगातार बढ़ता जा रहा है।

• ग्रामीण क्षेत्रों में दिन-रात मेहनत करने के बावजूद इन्हें सामाजिक सुरक्षा, मातृत्व लाभ, बीमा, पेंशन या अवकाश जैसी मूल सुविधाएँ तक प्राप्त नहीं होतीं।

 

@समस्याओं के प्रमुख कारण

1. संविदा प्रणाली की खामियाँ – स्थायी नौकरी न होने से भविष्य असुरक्षित है।

2. सरकारी उपेक्षा – केंद्र व राज्य दोनों स्तरों पर इनके मानदेय में एकरूपता नहीं है।

3. अत्यधिक कार्यभार – कोविड-19 के दौरान आशा कार्यकर्ताओं ने फ्रंटलाइन वर्कर की भूमिका निभाई, परंतु पारिश्रमिक में कोई उचित वृद्धि नहीं हुई।

4. प्रशिक्षण व सुरक्षा की कमी – ग्रामीण इलाकों में कार्य करते समय इन्हें कई बार जोखिमपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।

 

@परिणाम

• आर्थिक असुरक्षा के कारण अनेक आशा कार्यकर्ता अपने दायित्वों से विमुख हो रही हैं।

• प्रेरणा की कमी के चलते ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

• कई बार विरोध प्रदर्शन और हड़तालें भी देखने को मिलीं जिससे स्वास्थ्य योजनाएँ प्रभावित हुईं।

 

@आवश्यक उपचारात्मक सुझाव

1. न्यूनतम वेतन सुनिश्चित किया जाए – सरकार को आशा कार्यकर्ताओं के लिए कम से कम 18,000 रुपये मासिक वेतन तय करना चाहिए।

2. नियमित कर्मचारी का दर्जा दिया जाए – इन्हें अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की तरह स्थायी पद पर समायोजित किया जाए।

3. सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में शामिल किया जाए – बीमा, पेंशन, मातृत्व अवकाश व चिकित्सा सुविधा दी जाए।

4. कार्य मूल्यांकन आधारित प्रोत्साहन – बेहतर कार्य करने वाली आशा कार्यकर्ताओं को अतिरिक्त सम्मान व पुरस्कार दिए जाएँ।

5. समान वेतन नीति लागू की जाए – सभी राज्यों में एक समान मानदेय नीति लागू हो ताकि असमानता खत्म हो।

6. प्रशिक्षण और सुरक्षा – कार्यस्थल पर सुरक्षा उपकरण, नियमित प्रशिक्षण और मानसिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध कराई जाए।

 

@निष्कर्ष

    आशा कार्यकर्ता भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था की अदृश्य नायकाएँ हैं। इनका योगदान केवल स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता और महिला सशक्तिकरण से भी जुड़ा है। इसलिए इनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार सरकार की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है। यदि इन्हें उचित मानदेय, सुरक्षा और सम्मान नहीं दिया गया, तो देश की प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था कमजोर पड़ जाएगी।

साभार : शिखर अधिवक्ता उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ

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