क्या वास्तव में गौतम बुद्ध ने संस्कृत का बहिष्कार किया था
बुद्ध (Gautama Buddha) जिस जमाने में पैदा हुए, उस जमाने में संस्कृत (Sanskrit language) का बोलबाला था. हालांकि संस्कृत तब शासकों और कुलीन वर्ग की भाषा ज्यादा थी. इसीलिए आमजन तक पहुंचने के लिए गौतम बुद्ध ने संस्कृत से परहेज किया था. उन्होंने संस्कृत की बजाए मगही का इस्तेमाल किया.
पिछले दिनों प्रकाशित हुई शेल्डन पोलाक की किताब " संस्कृत: द लेंग्वेज ऑफ द गॉड्स इन द वर्ल्ड ( Sanskrit: The language of the Gods in the World of Men by Sheldon Pollock) ने खासी चर्चाएं बटोरीं. उन्होंने साफतौर पर ये लिखा है कि बुद्ध ने संस्कृत को खारिज कर दिया था.
कहा जाता है कि बुद्ध ने संस्कृत भाषा का बहिष्कार कर दिया था और आमतौर पर मगही भाषा का इस्तेमाल किया था, जो उस जमाने में आमजन की भाषा थी, जिसे बोलचाल में सामान्य लोग ज्यादा इस्तेमाल करते थे. आमतौर पर संस्कृत को ब्राह्मणों की भाषा माना जाता था. ईसापूर्व संस्कृत का उदगम गांधार इलाके में हुआ. वहां से बड़े इलाके में फैली. संस्कृत इतनी प्राचीन भाषा है कि माना जाता है कि दुनिया की बहुत ढेर सारी भाषाओं की ये जननी रही है.
बंटी हुई है विद्वानों की राय
हालांकि विद्वानों की राय इस मामले में आमतौर पर बंटी हुई है कि बुद्ध ने संस्कृत को खारिज किया था या नहीं. हालांकि प्राचीन भारत में संस्कृत को भगवान की भाषा भी माना जाता था. अमेरिका के संस्कृत स्कॉलर शेल्डन पोलाक ने लिखा है कि गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म के उभरने के बाद भारत में संस्कृत के लिए मुश्किल समय आ गया था.
उस समय बहुत से विद्वानों खासकर बौद्ध धर्म के मतावलंबियों ने अपना आध्यात्मिक लेखन संस्कृत की बजाए पाली में करना शुरू किया.