मुडिया मेला : गिरिराज तहलहटी में बनने लगी मानव श्रंखला

मुडिया मेला : गिरिराज तहलहटी में बनने लगी मानव श्रंखला
-शिष्य परंपरा का अनूठा उदाहरण है गोवर्धन का मेला, 10 को है गुरु पूर्णिमा
    मथुरा । गुरु शिष्य परंपरा का अनूठा पर्व है गुरु पूर्णिमा को सनातनी दुनियाभर में मनाते हैं लेकिन कान्हा की नगरी में यह उत्सव को अनूठे अंदाज में मनाया जाता है, लाखों की भीड़ ब्रज धरा की ओर रुख करती है, श्रद्धालुओं की भीड़ का केन्द्र भले ही गोवर्धन में रहता हो लेकिन ब्रज के समूचे मठ मंदिर और आश्रम गुरु शिष्य परंपरा के साक्षी बनते हैं, लम्बी छुट्टियों के बाद शिक्षण संस्थाओं में भी चहल पहल हो जाती है।


    शिक्षण संस्थानों में भी गुरु पूर्णिमा का पर्व श्रद्धाभाव से मनाया जाता है, प्रति वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, शिष्य इस दिन अपने गुरु की शरण में पहुंचते हैं, देश विदेश के कौने कौने से तमाम लोग गुरू के प्रति कृतज्ञता जातने के लिए अपने गुरू स्थान पर आते हैं, विधि विधान से पूजा अर्चना कर दीक्षा ग्रहण करते हैं, परंपरा का निर्वहन करने के लिए शिष्यों का रूख गुरु आश्रमों की ओर होने लगा है, आश्रमों में इस समय तैयारियां चल रही हैं। चहल पहल है, भीड भाड है।


   धार्मिक मान्यता के अनुसार यह प्रथा सदियों से चली आ रही, इस परंपरा का निर्वहन आज भी चैतन्य महाप्रभु के परम शिष्य श्रीपाद सनातन गोस्वामी के अनुयायी करते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा को मुड़िया पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। सनातन गोस्वामी चौतन्य महा प्रभु के कृपा पात्र शिष्य थे। सन् 1515 में चौतन्य महाप्रभु ब्रज में पधारे। कुछ समय ब्रज में इधर उधर व्यतीत करने के उपरांत वह बंगाल वापस चले गए, महाप्रभु के परम शिष्य गौड़ेश्वर संप्रदाय के आचार्य श्रील श्रीपाद सनातन गोस्वामी गुरू के आदेशानुसार 1516 ई. में ब्रज में लुप्त तीर्थों के उद्धार, ब्रज भक्ति के संवर्धन और भगवत सेवा प्रसाद के लिए वृंदावन आए ।


    ब्रज में यदा कदा भजन करते हुए विरक्त संन्यासी के रूप में सनातन गोस्वामी गिरिराज जी की परिक्रमा का संकल्प लेकर कमलेश्वर महादेव पर झोपड़ी में रहने लगे। यहां उन्होंने भागवतामृत ग्रंथ की रचना की। 1558 ई. में अखंड ब्रजवास के बाद गुरु पूर्णिमा के दिन उन्होंने निकुंज लीला धरा धाम में प्रवेश कर गए। वह प्रतिदिन मुंडन किए हुए गिरिराज परिक्रमा करते थे। इसलिए उनके बाद उनके विरह में शोकाकुल ब्रजवासी व उनके अनुयायी शिष्य श्रद्धालुओं ने सिर मुड़ाकर मानसी गंगा में स्नान कर विमान निकालकर परिक्रमा लगाई थी। तबसे यह मेला मुड़िया पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


   प्रतिवर्ष इस तिथि में मुड़िया संकीर्तन के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है जिसका गोवर्धन वासी जगह जगह स्वागत करते हैं। यह प्रसिद्ध शोभायात्रा इस बार 10 जुलाई को श्रीपाद सनातन गोस्वामी के अनुयायी शिष्यों द्वारा गोवर्धन के चकलेश्वर स्थित श्री राधा श्याम सुंदर मंदिर से संत राम कृष्ण दास के नेतृत्व में निकाली जाएगी। राजकीय मुड़िया मेला की शोभा यात्रा निकालने के लिए संत तैयार हैं। आज प्रातः मुड़िया संत श्री राधा श्याम सुंदर मंदिर में सिर मुंडन कराकर परंपरा का निर्वहन करेंगे। 10 जुलाई को अनुयाई शिष्य गुरु पूजन कर मुडिया शोभायात्रा वाद्य यंत्रों के बीच नाचते गाते निकालेंगे।

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