सूचना आयोग बना जंग का अखाड़ा, न्यायिक जांच से हो सकते हैं बड़े खुलासे

सूचना आयोग बना जंग का अखाड़ा, न्यायिक जांच से हो सकते हैं बड़े खुलासे
सूचना आयोग के सुनवाई कक्ष 07 में 23 अप्रेल 2025 को घटित घटना पर जरूरी है गहन मंथन

उत्तर प्रदेश सूचना आयोग लखनऊ के सुनवाई कक्ष 07 में बुधवार को हुई घटना वेहद ही गम्भीर व विचारणीय है जिसमें एक राज्य सूचना आयुक्त महोदय द्वारा माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता व वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता डॉ0 दीपक जी शुक्ल जिनके द्वारा (विभिन्न सूचना का अधिकार अधिनियम का प्रयोग कर उत्तर प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों की वित्तीय अनियमितताओं जैसे जघन्य मामलों का खुलासा किया गया है), को एक सोची समझी साजिश के तहत भारतीय न्याय संहिता 2023 की कुल 8 धाराओं में एफआईआर दर्ज कराते हुए जेल भेज दिया गया, यह घटनाक्रम खुद ब खुद तमाम सवालों की श्रृंखला खड़ा कर रहा है :-

पहला सवाल - एफआईआर में सूचना आयुक्त महोदय द्वारा कहा गया है कि उनपर जूता फेंका गया, उनका गला दबाने का प्रयास किया गया जबकि सुनवाई कक्ष में करीबन दस से 12 लोगों के स्टाफ के साथ ही हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों की मौजदूगी में इतना सबकुछ होना और वहीं उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के सुनवाई कक्ष में सूचना आयुक्त के सिंहासन और आवेदक के खड़े होने के स्थान से करीबन चार से पांच फीट की दूरी है, तो क्या ऐसी स्थिति में ऐसी कोई भी घटना घटित होना सम्भव है ?

दूसरा सवाल - यदि सूचना आयुक्त महोदय की मनगढ़ंत बातों को सही मान भी लिया जाये तो आखिर ऐसी स्थिति आई ही क्यों ? क्या राज्य सूचना आयुक्त महोदय द्वारा कानून का पूर्णतः अनुपालन नहीं किया जा रहा है ? क्या आवेदकों को सूचना आयोग में न्याय नहीं मिल रहा है ? क्या सूचना आयोग में एकपक्षीय निर्णय पारित किये जा रहे हैं ? क्या उत्तर प्रदेश सूचना आयोग लखनऊ में भ्रष्टाचार व्याप्त है ? जबकि डॉ0 दीपक जी शुक्ल स्वयं वरिष्ठ अधिवक्ता व कानून का पूर्ण रूपेण पालन करने वाले व्यक्ति हैं और यह घटनाक्रम तमाम सवालों को खड़ा कर रहा है ।  

तीसरा सवाल - एफआईआर कर्ता मोहम्मद नदीम महोदय जिस समय यह तथाकथित घटना हुई उस वक्त राज्य सूचना आयुक्त के आसन पर विराजित थे तो वह उत्तर प्रदेश सूचना आयोग जोकि उच्च न्यायालय एवं राज्य सरकार द्वारा सयुंक्त रूप से गठित एक अर्ध न्यायिक संस्था के प्रतिनिधि के रूप में तैनात थे नाकि व्यक्तिगत रूप से विराजमान थे तो उक्त एफआईआर राज्य सूचना आयोग लखनऊ के द्वारा दर्ज नहीं कराकर उनके द्वारा व्यक्तिगत रूप से क्यों दर्ज कराई गई ?

4- चौथा सवाल -अगर यह एफआईआर मोहम्मद नदीम जी के द्वारा व्यक्तिगत रूप से दर्ज कराई गई है तो पुलिस प्रशासन को बिना किसी जांच पड़ताल किये ही डॉ0 दीपक जी शुक्ल की गिरफ्तारी किस आधार पर की गई जबकि संवेधानिक व्यवस्था के अनुसार बिना किसी भी जांच पड़ताल किये ही गिरफ्तारी किया जाना असंवैधानिक है ।

5- पांचवा सवाल - उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में विराजमान अधिकांश सूचना आयुक्तों की कार्यप्रणाली काफी अरसे से विवादित चली आ रही है और ऐसी मनमानी व तानाशाही पूर्ण कार्यप्रणाली को लेकर उच्च न्यायालय इलाहाबाद व लखनऊ खण्डपीठ में बड़ी संख्या में दाखिल तमाम याचिकाओं के साथ ही उत्तर प्रदेश की महामहिम राज्यपाल महोदया के समक्ष सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 17 के तहत लम्बे अरसे से सैंकड़ों की संख्या में लंबित प्रार्थना पत्रों के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार व महामहिम राज्यपाल महोदया द्वारा आज तक क्यों संज्ञान नहीं लिया गया और ना ही उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा क्यों कोई संज्ञान नहीं लिया गया ?

छटवां सवाल - वेहद ही विचारणीय है कि उक्त घटनाक्रम उत्तर प्रदेश की महामहिम राज्यपाल महोदया के समक्ष उत्तर प्रदेश सूचना आयोग लखनऊ में विराजमान राज्य सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम के विरुद्ध सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 17 के तहत डॉ0 दीपक जी शुक्ल के द्वारा प्रत्यावेदन प्रेषित किये जाने के पश्चात ही क्यों हुआ ?, कहीं ऐसा तो नहीं कि यह घटनाक्रम महामहिम राज्यपाल महोदया को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 17 के तहत प्रेषित प्रत्यावेदन ही बड़ी बजह हो ?

अब वक्त आ गया है कि लोकतांत्रिक देश भारत की सम्प्रभुता व संविधान की रक्षा व संरक्षा के लिए भारत की सर्वोच्च संस्था माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विगत दिनों 23 अप्रेल 2025 को उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग लखनऊ के सुनवाई कक्ष संख्या 07 में सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम और आरटीआई कार्यकर्ता व उच्च न्यायालय इलाहाबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ0 दीपक शुक्ला के मध्य घटित उक्त प्रकरण पर स्वतः संज्ञान लेते हुए ठोस कदम उठाया जाए व न्यायिक जांच कमेटी गठित कर निष्पक्ष जांच कराई जाये और एक सोची समझी साजिश के तहत सूचना आयोग के सुनवाई कक्ष 07 में 23 अप्रेल 2025 को दोपहर 12 बजे घटित घटना के बाद करीबन दो बजे डॉ0 दीपक शुक्ल को लखनऊ कारागार में भेजे जाने और घटना से ठीक एक दिन पहले यानी 22 अप्रेल 2025 को सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम के निजी सचिव द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार के जनसम्पर्क विभाग को जारी प्रेस नोट के माध्यम से 23 अप्रेल 2025 को घटित उक्त घटनाक्रम व डॉ दीपक शुक्ल को जेल भेजे जाने की जानकारी दिये जाने सहित अन्य बिन्दुओं पर निष्पक्ष तौर पर न्यायिक जांच होने पर उत्तर प्रदेश सूचना आयोग लखनऊ में चल रहीं तमाम कारगुजारियों व अनियमितताओं और बड़े स्तर पर चल रहे भ्रष्टाचार तथा आरटीआई एक्टिविस्टों के उत्पीड़न के मामलों के खुलासे के साथ ही सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की मूल भावना व आत्मा की रक्षा और सूचना का अधिकार के माध्यम से देश के 140 करोड़ आमजनता को मिले अधिकार के संरक्षण व मौलिक अधिकारों के हनन होने से बचाया जा सकता है, वहीं सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार का खुलासा करने वाले सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सक्रिय आरटीआई कार्यकर्ताओं को देश के विशेष योद्धा का दर्जा प्रदान कर उनकी व उनके परिवार को सुरक्षा प्रदान किया जाना भी आज के समय में अतिआवश्यक हो गया है ।

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