
सुनियोजित तरीके से दी जा रही है कॉरिडोर के विरोध की हवा
सुनियोजित तरीके से दी जा रही है कॉरिडोर के विरोध की हवा
-तीर्थ पुरोहित और पंडा पुजारियों के साथ ही विपक्षी दल भी हुए सक्रिय
मथुरा। ठाकुर बांकेबिहारी कॉरिडोर पर अधिकारियों और सरकार के दूतों को लोगों को यह समझाना पड रहा है कि कॉरिडोर से रोजगार सृजन होगा, पर्यटकों की संख्या बढेगी और लोग सुंविधा के साथ ठाकुर बांकेबिहारी सहित दूसरे मंदिरों में दर्शन कर सकेंगे, कॉरिडोर पर सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बाद जब कॉरिडोर को लेकर सरकार ने ऐलान किया तो ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर के गोस्वामी सेवायत कॉरिडोर के विरोध में आ गये।
हालांकि यह सुगबहाट कई साल से चल रही थी कि कॉरिडोर बनेगा, इसमें कोर्ट कचहरी का चक्कर भी पडा और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। जब सरकार ने पूरे परिदृश्य को साफ करना शुरू किया तो यकायक कॉरिडोर का विरोध तेज हो गया। शुरुआत में सिर्फ ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर से जुडे गास्वामी परिवार और सेवायत ही विरोध कर रहे थे। धीरे धीरे विरोध को हवा मिलने लगी, दूसरी ओर सरकार ने विरोध कर रहे लगों को समझाने के लिए आलाधिकारियों को लगा दिया। कई दौर की वार्ता हुई लेकिन बेनतीजा साबित हुई।
कॉरिडोर के समर्थन में भी लोग आये लेकिन धीरे धीरे विरोध के स्वर तेज होने लगे, शुरूआत में कुछ लोग देखो और इंतजार करो की रणनीति पर कायम रहे। जब विरोध के स्वर कुछ तेज हुए तो वह भी हवा देने के लिए आग आ गये। वृंदावन के बाहर भी कॉरिडोर का विरोध होने लगा। नंदगांव, बरसाना जैसी जगहों तक यह विरोध पहुंच गया। कुछ जातीय संगठन, तीर्थ पुरोहित, पंडा पुजारी, अलग अलग मंदिरों से जुडे सेवायत और प्रबंधतंत्र खुल कर विरोध में आ गये। वहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने भी वृंदावन पहुंच कर विरोध कर रहे लोगों का पक्ष लिया। यह कांग्रेस का कॉरिडोर पर तीव्र प्रतिरोध नहीं था लेकिन भावनाओं को टटोलने और अवसरों की तलाश जरूर कहा जा सकता है।
वहीं कुछ एक लोगों ने सुर्खियां बटोरने के लिए ही सही खून से मुख्यमंत्री को पत्र तक खिल डाले। वहीं सांसद हेमा मालिनी से कॉरिडोर की आवश्यक्ता का समझाने के साथ ही लोगों को यह बताने का प्रयास किया है कि यह किस तरह से जरूरी है और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार सृजन का जरिया बन सकता है। भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता और जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर बेहद सधे हुए दिख रहे हैं। वह उस तीव्रता से कॉरिडोर पर माहौल बनाने के लिए सामने नहीं आ रहे हैं जिसा के वह दूसरे मुद्दों पर करते रहे हैं। संभवतः वह राजनीतिक दूरगामी गणित को फलाने में लगे हों। शुरुआत में विरोध के जो स्वर नदारद या बेहद मंदम थे हवा मिलने पर वह तेज अवाज में सुनाई दे सकते हैं।