कबाड़ बीनते हाथों में किताब थमाने" की जिद ने पेश की अनूठी मिशाल 

कबाड़ बीनते हाथों में किताब थमाने" की जिद ने पेश की अनूठी मिशाल 
-जस्टिस फ़ॉर चिल्ड्रन स्ट्रीट स्कूल के माध्यम से जारी है शिक्षा का प्रसार 
-एक बच्चे के कंधे पर कबाड़, दूसरे के कंधे पर किताब मजूर नहीं-सतीश शर्मा
        मथुरा । हमारे समाज में जिद्दी होना ठीक नहीं माना जाता है लेकिन यह जिद कभी-कभी अच्छी भी साबित होती है, ऐसे जिद्दी व्यक्ति की समाज सराहना भी करता है, ऐसे ही एक व्यक्ति की "कबाड़ बीनने वाले मासूम हाथों में किताब थमाने की" जिद है जिन्होंने शहर के स्ट्रीट चिल्ड्रेन की जिंदगी में शिक्षा का उजियारा लाने के लिए अपने जीवन के कई सुनहरे अवसर भी जाया कर दिये हैं, जस्टिस फ़ॉर चिल्ड्रन स्ट्रीट स्कूल के संस्थापक सतीश शर्मा इस जिद में तल्लीन रहते हुए कबाड़ बीनने वाले बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के साथ ही उनके लिए पाठ्य सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं ।
      कान्हा की नगरी के तमाम चमकीले पहलुओं की ओट में कई ऐस स्याह सच भी हैं जिनकी ओर शायद ही किसी का ध्यान जाता है, जस्टिस फॉर चिल्ड्रन स्ट्रीट स्कूल के संस्थापक सतीश शर्मा का ध्यान इनमें से एक पहलू की ओर गया और उन्होंने पढ़ाई लिखाई शुरू करने की उम्र में किताब थामने की जगह कबाड़ बीनने वाले हाथों को थामने की जिद ठान ली, इन बच्चों के लिए वर्ष 2008 में सतीश शर्मा ने जस्टिस फॉर चिल्ड्रन स्ट्रीट स्कूल की शुरुआत की और इसमें 25 बच्चों को शामिल किया ।
       गुरुवार को जस्टिस फॉर चिल्ड्रन स्ट्रीट स्कूल ने 15वां स्थापना दिवस मनाया, स्ट्रीट स्कूल में ऐसे बच्चों की संख्या 300 से भी अधिक है, जो कबाड़ बीनने का काम छोडकर किताब थामे हुए थे, सतीश चंद्र शर्मा कहते हैं कि एक ही उम्र के दो बच्चों में एक के कंधों पर कबाड़ और दूसरे के कंधों पर किताब के थैले ने मुझे झकझोर कर रख दिया था, 12 अप्रैल 2008 में नवादा स्थित झुग्गी झोपड़ियों से 25 बच्चों से शुरू हुआ, जस्टिस फॉर चिल्ड्रन स्ट्रीट स्कूल निःशुल्क शिक्षा का अभियान आज तीन सेंटरों के माध्यम से लगभग 300 बच्चों को शिक्षा दे रहा है, जिन्हें निशुल्क शिक्षा केंद्रों पन्ना पोखर गोपाल नगर एवं लाजपत नगर सेंटर से जोड़ने का कार्य सामाजिक सहयोग एवं 15 वॉलंटर्स के साथ निःशुल्क रूप से किया जा रहा है, इन बच्चों को शिक्षा संस्कार व समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य किया जा रहा है, इन बच्चों को स्कूलों में प्रवेश दिलाने के साथ ही इनकी ड्रेस जूते बैग किताब स्टेशनरी आदि की व्यवस्था भी सेवाभावी लोगों के सहयोग से की जाती है ।

 

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