मुड़िया पूर्णिमा मेला : करीबन 465 वर्ष पुरानी है परम्परा, उमड़ते हैं लाखों
मुड़िया पूर्णिमा मेला : करीबन 465 वर्ष पुरानी है परम्परा, उमड़ते हैं लाखों
-सनातन गोस्वामी के गोलोक गमन पर शिष्यों ने सिर मुड़ाकर लगाई थी पहली बार परिक्रमा
मथुरा । पांच दिवसीय मुडिया पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का मेला भी कहा जाता है, लगभग 464 साल पहले सनातन गोस्वामी के गोलोकगमन में प्रवेश करने पर उनके अनुयायी शिष्यों ने सिर मुडाकर परिक्रमा लगाई थी, तभी से इस मेले को मुडिया पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, हालांकि यह मेला गुरु शिष्य परंपरा का अनूठा उदाहरण है, चूंकि इसी पूर्णिमा को शिष्य गुरु से गुरु दीक्षा ग्रहण करते हैं, गोवर्धन में यह मुडिया मेला के नाम से प्रसिद्ध है, पांच दिवसीय मुडि़या मेला में करोड़ों श्रद्धालु भक्त गोवर्धन पहुंचकर गिरिराज जी की परिक्रमा लगाते हैं ।
मुडिया मेला 27 जून से शुरू हो जायेगा, तीन जुलाई को गोवर्धन के कमलेश्वर स्थित राधा श्याम सुंदर मंदिर से मुंडिया शोभायात्रा निकाली जायेगी, इसकी तैयारियां जोरशोर से चल रही हैं, मुडिया संत रामकिशन दास बताते हैं कि इसकी स्मृतियां चैतन्य महाप्रभु और सनातन गोस्वामी से जुड़ी हुई हैं, चैतन्य महाप्रभु से प्रभावित होकर उन्होंने मंत्री पद त्याग दिया और वृंदावन आ गये, यहां चैतन्य महाप्रभु से दीक्षा प्राप्त कर वह गोवर्धन में मानसी गंगा के तट स्थित कालेश्वर मंदिर के निकट कुटी बनाकर रहने लगे, वह वृद्धावस्था में भी प्रतिदिन गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा किया करते थे ।
सनातन गोस्वामी का अब से 464 वर्ष पहले आषाढ़ पूर्णिमा संवत 1558 को निधन हो जाने पर उनके शिष्यों ने परंपरानुसार सिर मुंडवाकर सनातन गोस्वामी की अर्थी के साथ गाते बजाते हुए कीर्तन कर परिक्रमा लगाई, सनातन गोस्वामी के निर्वाण की तिथि शिष्यों के लिए पुण्यतिथि बन गई, अनुयाई शिष्य सिर मुंडन कराकर शोभा यात्रा निकालते हैं, इस बार 465वीं मुडिया शोभा यात्रा निकाली जायेगी, बताते हैं कि सनातन गोस्वामी पश्चिमी बंगाल के शासक हुसैन शाह के दरबार में मंत्री थे, चैतन्य महाप्रभु से प्रभावित होकर उन्होंने मंत्री पद त्याग दिया और वह वृंदावन आ गये, यहां चैतन्य महाप्रभु से दीक्षा प्राप्त कर वह गोवर्धन में मानसी गंगा स्थित कालेश्वर मंदिर के निकट कुटी बनाकर रहने लगे, वह वृद्धावस्था में भी प्रतिदिन गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा किया करते थे ।