नाथद्वारा शैली पर एकाग्र पुस्तक "पिछवाई" का हुआ विमोचन
नाथद्वारा शैली पर एकाग्र पुस्तक "पिछवाई" का हुआ विमोचन
-ब्रज संस्कृति शोध संस्थान द्वारा कराया गया है पुस्तक का प्रकाशन
ब्रज क्षेत्र भूगोल से कहीं अधिक भावलोक में प्रतिष्ठित हुआ है-पीठाधीश्वर
मथुरा । ब्रज संस्कृति शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित नाथद्वारा शैली पर एकाग्र पुस्तक "पिछवाई" का विमोचन गोदा विहार मंदिर के पीठाधीश्वर महंत स्वामी वृन्दावन आचार्य द्वारा किया गया, महन्त वृन्दावन आचार्य ने पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा कि ब्रज क्षेत्र भूगोल से कहीं अधिक भावलोक में प्रतिष्ठित हुआ है, जहां श्रीकृष्ण, वहीं ब्रज है, मुगल बादशाह औरंगजेब की धर्मान्धता पूर्ण नीति के चलते सन् 1669-70 ई. के लगभग आचार्य और गोस्वामियों को अपने आराध्य देव विग्रहों के साथ ब्रजभूमि छोड़कर पलायन करना पड़ा था, उस समय गोवर्धन पर्वत पर प्रतिष्ठित गोवर्धननाथ जी के विग्रह को ब्रज से राजपूताना ले जाकर स्थापित किया गया जिनकी ख्याति अब श्रीनाथजी के रूप में है ।
पीठाधीश्वर महंत स्वामी वृन्दावन आचार्य ने कहा कि जहाँ पिछ्वाइयों के रूप में विकसित हुई श्रीनाथजी के स्वरूप चित्रांकन की अद्भुत कला परम्परा जिसमें चित्रित हुए हैं, मन्दिरों के उत्सव, मनोरथ, गऊ ग्वाल, गोपी, वन ,उपवन, सरोवर, यमुना, ब्रज व ब्रज लीलाओं का भव्य कलालोक, यह सच्चे अर्थों में ब्रज की प्रतिनिधि चित्र शैली है, जो ठाकुरजी की सेवा के दिव्य भावलोक से जन्मी है, श्रीधाम गोदा विहार मंदिर के प्रकल्प ब्रज संस्कृति शोध संस्थान द्वारा देश एवं विदेश के प्रसिद्ध विद्वानों तथा विदुषियों द्वारा नाथद्वारा चित्र शैली पर एकाग्र महत्वपूर्ण शोध आलेखों का झ्स पुस्तक में संकलन किया है ।
संस्थान के सचिव लक्ष्मीनारायण तिवारी ने कहा कि ब्रज संस्कृति शोध संस्थान निरन्तर तेरह वर्षों से ब्रज के इतिहास, कला, पुरातत्व, साहित्य एवं संस्कृति पर निःस्वार्थ भाव से कार्य कर रहा है, ब्रज संस्कृति शोध संस्थान की नवीन पुस्तक पिछवाई नाथद्वारा चित्रशैली पर आधारित है, जो हिन्दी में इस विषय की पहली सचित्र पुस्तक है, प्रकाशन अधिकारी गोपालशरण शर्मा ने कहा कि संस्थान द्वारा निरन्तर ऐसे विषयों पर प्रकाशन किया जा रहा है जो कला, साहित्य, इतिहास एवं संस्कृति के अध्येताओं के लिए महत्वपूर्ण होंगे, पार्षद शशांक शर्मा, महंत शाश्वत आचार्य, राधारमण वशिष्ठ, राजेश सेन, संगीताचार्य संजय शास्त्री, शीतल शास्त्री, बृजगोपाल चित्रकार, विश्वजीत दास, गोपाल गौड़, अशोक कालिका, सीताराम कालिका, गणपत कालिका, ब्रजेश पुजारी आदि मौजूद थे ।